योगदा आश्रम में आयोजित तीन दिवसीय साधना संगम का रविवार को हुआ समापन, संयासिनी द्रौपदी माई ने कहा: “क्रियायोग : मानव के विकास को तीव्र करता है”

राँची, 13 नवम्बर : “योग का उद्देश्य और लक्ष्य आत्म चेतना के खोए हुए स्वर्ग को पुनः प्राप्त करना है जिसके माध्यम से व्यक्ति जान पाता है कि वह परमात्मा के साथ एक है, और सदा रहा है।” वाईएसएस राँची आश्रम में तीन दिवसीय साधना संगम के समापन वक्तव्य में संन्यासिनी द्रौपदी माई ने अपने गुरु और योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया/सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (वाईएसएस/एसआरफ़) के संस्थापक श्री श्री परमहंस योगानन्द (योगी कथामृत के लेखक), का हवाला देते हुए कहा।

इस शांत आश्रम में रविवार की सुबह उपस्थित 500 से अधिक भक्तों को संबोधित करते हुए, एसआरएफ़ संन्यासिनी द्रौपदी माई ने, “क्रिया योग : द्वारा मानव के विकास को तीव्र करना” विषय पर चर्चा की। इस सत्संग को भारत और विश्वभर में 2,000 से भी अधिक वाईएसएस और एसआरएफ़ भक्तों ने लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से एक साथ ऑनलाइन देखा। द्रौपदी माई और तीन अन्य एसआरएफ संन्यासिनी – ब्रह्माणी माई, ब्रह्मचारिणी कृष्णप्रिया और ब्रह्मचारिणी वैष्णवी, लॉस एंजेलिस, यूएसए में एसआरफ़ अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय से आई हैं, और वर्तमान में भारत में योगानन्दजी के आश्रमों का दौरा कर रही हैं।

“परमहंस योगानन्दजी कहते हैं कि योग केवल ईश्वर-संवाद का साधन ही नहीं है, अपितु आत्म-परिवर्तन का साधन भी है; द्रौपदी माई ने कहा कि हमें सचेतन रूप से अवांछित आचरणों को शुद्ध करने का प्रयास करना चाहिए ताकि हम उच्च अवस्थाओं की अनुभूतियों के लिए तैयार हो सकें। प्राचीन भारतीय ऋषि पतंजली द्वारा योग की परिभाषा : “चित्त वृत्ति निरोध,” या विचारों और भावनाओं के भँवर, जो हमारे भीतर निरंतर उठते रहते हैं, पर विराम – का उल्लेख करते हुए द्रौपदी माई ने समझाया, “क्रियायोग ध्यान द्वारा मन और भावनाएँ शांत और अविचलित हो जाते हैं … तब हम परिस्थितियों और लोगों को स्पष्टता से देख सकते हैं; जिन चुनौतियों का हम सामना करते हैं या जिन गतिविधियों के साथ हम संलग्न हैं, उनका सम्मानपूर्वक और स्पष्ट रूप से प्रत्युत्तर दें; और सभी परिस्थितियों में एक धार्मिक जीवन जीने का विवेकपूर्ण विकल्प चुनें जो उचित जीवन के साथ संरेखित हो।

धार्मिक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित, जीवन जीने के लिए भक्तों को प्रोत्साहित करते हुए, उन्होंने कहा, “धर्म, सदाचार, ईश्वर के लिए गहन प्रेम और भक्ति का जीवन जीने से, हम ईश्वर के प्रकाश के वाहक बन जाते हैं, जहाँ भी हम जाते हैं और जब भी हम दूसरों के लिए प्रार्थना करते हैं, हम अपने प्रेम को विश्व के सभी लोगों पर बिखेरते हैं। इस तीन दिवसीय साधना संगम के दौरान, आदरणीय संन्यासिनियों ने योगानन्दजी की क्रियायोग शिक्षाओं पर सत्संग दिया और सामूहिक ध्यान का संचालन किया। महिला भक्त, योगानंदजी की शिक्षाओं को अपने दैनिक जीवन में लागू करने के लिए, संन्यासिनियों से व्यक्तिगत परामर्श प्राप्त करने के इस अनूठे अवसर का लाभ उठा सकीं। उनमें से एक ने साझा किया: “संयुक्त राज्य अमेरिका से आईं हमारी एसआरएफ़ संन्यासिनियों से मिलना एक आशीर्वाद है, जो जगद्गुरु, हमारे प्रिय गुरुदेव योगानन्दजी, के नक्शेकदम पर दृढ़ता से चल रही हैं, और हमें भी ऐसा करने के लिए प्रेरित कर रही हैं।”

राँची के बाद सभी संन्यासिनियाँ इस महीने के अंत में वाईएसएस के नोयडा आश्रम में इसी तरह के एक कार्यक्रम का संचालन करेंगी। अधिक जानकारी: yssofindia.org

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

आप पसंद करेंगे