“छोटी माँ, तुम्हारा पुत्र एक योगी बनेगा। एक आध्यात्मिक इंजन की भांति वह अनेक आत्माओं को ईश्वर के साम्राज्य तक ले जाएगा।” श्री श्री परमहंस योगानन्द के परमगुरु, श्री श्री लाहिड़ी महाशय, ने इन अविस्मरणीय शब्दों में नन्हें मुकुन्द के महान् मार्ग के विषय में उस समय भविष्यवाणी की थी जब वे अपनी मां की गोद में मात्र एक शिशु थे। कालान्तर में जब मुकुन्द ने अत्यन्त कठोर अनुशासन के आध्यात्मिक प्रशिक्षण की अनेक वर्षों की अवधि पूर्ण करने के पश्चात् स्वामी के गेरुए वस्त्र धारण करने का निर्णय किया, तो उनके गुरु, स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि, ने संन्यास परम्परा के अन्तर्गत उन्हें “योगानन्द” नाम प्रदान किया। योगानन्दजी की पुस्तक “योगी कथामृत” के “मेरे गुरु के आश्रम की कालावधि” नामक प्रेरक प्रकरण में श्रीरामपुर स्थित उनके गुरु के आश्रम, जो उनके कोलकाता के घर से अधिक दूर नहीं था, में एक संन्यासी प्रशिक्षार्थी के रूप में उनके जीवन का रोचक वर्णन मिलता है। सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 5 जनवरी को योगानन्दजी का जन्मदिन मनाया जाता है। महान् गुरु, जो पश्चिम में योग-ध्यान के दूत थे, ने भारत की प्राचीन आध्यात्मिक शिक्षाएँ प्रदान करने के लिए अमेरिका में तीन दशक से अधिक समय व्यतीत किया था। क्रियायोग मार्ग एक व्यापक जीवन शैली है और इसे आत्म-साक्षात्कार का “वायुयान मार्ग” कहा जाता है। योगानन्दजी के लाखों अनुयायी उनकी क्रियायोग शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं और उनसे अत्यधिक लाभान्वित हुए हैं। यह लेखक व्यक्तिगत रूप से इस तथ्य की पुष्टि कर सकता है कि योगानन्दजी द्वारा सिखाई गई ध्यान प्रविधियों ने उसका जीवन पूर्ण रूप से रूपान्तरित कर दिया है। योगानन्दजी ने सन् 1952 में अपना शरीर त्याग दिया था। उनकी शिक्षाओं के प्रसार का कार्य अधिकृत रूप से उनके द्वारा संस्थापित दो संस्थाओं — योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इण्डिया (वाईएसएस) और विश्व स्तर पर सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) — के द्वारा सम्पन्न किया जा रहा है। योगानन्दजी के जीवन और व्यक्तित्व में व्याप्त शुद्ध प्रेम, शान्ति और आनन्द ने लाखों लोगों को उनके मार्गदर्शन और ईश्वर के मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रेरित किया है। योगानन्दजी वास्तव में स्वयं प्रेम के अवतार थे और आज भी उन्हें “प्रेमावतार” के रूप में जाना जाता है। योगानन्दजी के जीवनकाल में लूथर बरबैंक और अमेलिटा गैली-कर्सी जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति उनके शिष्य थे, तथा गुरु के भौतिक शरीर त्यागने के बाद भी उनकी शिक्षाओं ने जॉर्ज हैरिसन, रविशंकर और स्टीव जॉब्स जैसे महान् लोगों के जीवन को अत्यन्त गहनता से प्रभावित किया है। सन् 1952 में जब उन्होंने इस पृथ्वी जगत् से परलोक के लिए प्रस्थान किया, तब तक योगानन्दजी ने दिव्य प्रेम के अपने शक्तिशाली संदेश के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व को सूक्ष्म और प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया था। अपने शिष्यों के लिए उनका स्पष्ट परामर्श था कि शेष सब कुछ प्रतीक्षा कर सकता है किन्तु ईश्वर की उनकी खोज प्रतीक्षा नहीं कर सकती है। “योगी कथामृत” के अतिरिक्त उनके विशाल लेखनकार्य में “व्हिस्पर्स फ्रॉम इटरनिटी,” “मेटाफिज़िकल मेडिटेशंस,” और “सॉन्ग्स ऑफ द सोल” जैसी उत्कृष्ट पुस्तकें सम्मिलित हैं। उनके अनेक व्याख्यान “जरनी टू सेल्फ़-रियलाइज़ेशन,” “द डिवाइन रोमांस (दिव्य प्रेम-लीला)” और “मैन्स इटरनल क्वेस्ट (मानव की निरन्तर खोज)” जैसी पुस्तकों में संकलित किये गए हैं। वाईएसएस/एसआरएफ़ पाठमाला, जिसका अध्ययन अपने घर बैठकर किया जा सकता है, सभी सत्यान्वेषियों को ध्यान प्रविधियों के साथ-साथ आदर्श-जीवन कौशल के सम्बन्ध में चरणबद्ध मार्गदर्शन प्रदान करती है। इस धरती पर योगानन्दजी का जीवनकाल कुछ दशकों तक ही सीमित था, परन्तु ईश्वर-केन्द्रित जीवन पर अपनी पूर्ण एकाग्रता से उन्होंने जिन शक्तिशाली आध्यात्मिक तरंगों का निर्माण किया था, वे अब एक विशाल आकार ले चुकी हैं। प्रत्येक भक्त जो पूरी लगन से उनकी शिक्षाओं का पालन करता है, इस संसार में और उसके परे उसका कल्याण निश्चित है! अधिक जानकारी के लिए : yssofindia.org
लेखक : विवेक अत्रे
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