कभी लोग गियरलेस स्कूटर का उपहास बनाते थे, आज उसी का जमाना है…

✍️ अनित कुमार सिंह

80 का दशक, जब राजदूत मोटरसाइकिल और बजाज स्कूटर का जमाना हुआ करता था। कुछेक लोग ही यामाहा, यज़्दी या फिर बुलेट में दिखते थे। शान की सवारी और हमारा बजाज हर एक नागरिक के जुबां पर था, परफॉर्मेंस और मजबूती दोनों के मामले में ये बाजार में अपना आधिपत्य जमा चुके थे , पर उस समय एक और गाडी भारतीय ऑटोमोबाइल सेक्टर में उतर चुकी थी और एक अलग वर्ग के ऊपर केंद्रित थी। वो थी काइनेटिक की लूना ,जो गियर लेस थी और लड़कियों / महिलाओ व् वृद्ध लोगो के लिए काफी आरामदायक थी।

फोटो: इंटरनेट/ट्विटर/फैनेंशियल एक्सप्रेस

वैसे तो लूना 1972 में ही भारतीय बाजार में आई थी पर 80 के दशक में यह काफी प्रचलित हुई थी। साउथ में तो खास तौर पर इसका काफी अच्छा बाजार रहा था। सामान ढोने के साथ आम कार्यो के लिए भी यह ख़ासा उपयोग में आई, पर लोग स्कूटर और मोटर साईकिल को ही ज्यादा तरजीह देते रहे। फिर 1990 के दौर में इसी कांसेप्ट में बजाज ने सन्नी गियरलेस स्कूटी निकाली जो लोगो के आकर्षण का केंद्र तो बनी पर इसे भी ज्यादा तरजीह नहीं मिली। लूना की तरह सन्नी को भी लोग लड़कियों की गाड़ी और कमजोर कह नहीं खरीदते थे पर वही स्कूटी जिसे लोग कभी हंसी का पात्र बनाते थे और चढ़ने में शर्म करते थे, आज उसी तरह की गियरलेस स्कूटी का जमाना है।

फोटो: बाइक्स फोर सेल/इंटरनेट

मुझे याद है मेरे चाचा के पास काइनेटिक लूना हुआ करता था, जिसे लेकर मैं भी चला करता था। जब भी दोस्त मिलते खूब उसका मजाक उड़ाते। दो-दो लोग बैठ जाते और बोलते , अरे ये तो खींच ही नही रहा। लूना में पैडल देख कर कहते, ओ यह तो साइकिल है। उसी प्रकार जब सन्नी स्कूटी आई तो लोग उसके हल्के बनावट के कारण नकार देते थे। पर वो नहीं जानते थे कि आगे चलकर यही बिना गियर वाली स्कूटी ही प्रचलित होगी।

अब चाहे लड़कियां हो , महिलाएं हो या युवा लड़के सभी स्कूटी के दीवाने है। कहते है वक्त सबका आता है , यह स्कूटी के मामले में सच ही प्रतीत हुआ। गियर वाले स्कूटरों को लगभग ख़त्म कर अब मोटरसाइकिल के साथ स्कूटी ही प्रति स्पर्धा कर रही। हाँ तब के समय में स्कूटी उतनी मजबूत और बड़ी नहीं हुआ करती थी , किन्तु उन्ही ने तो रास्ता दिखाया। दो दशकों में स्कूटी के रूप , मजबूती और क्षमता के मामले में काफी परिवर्तन आये है , अब तो अच्छी लाइट्स, मोबाईल चार्जर, ब्लू टूथ से युक्त स्कुटिया आ रही। रंग डिजाइन और खूबसूरती के मामले में ये मोटरसाइकिलों को खासा टक्कर दे रहे और कीमत भी अब उनके बराबरी पर ही है। आज अच्छी स्कूटी 90 हजार के नीचे मिलना मुश्किल है। सामने जगह, डिक्की में जगह और भीड़- भाड़ वाले इलाको में आसानी से चल सकने के कारण व्यापारी वर्ग तो आज स्कूटी के बिना चलता ही नहीं, लड़कियों के अलावे व्यापारी वर्ग की यह पहली पसंद बन चुकी है। परन्तु जैसा की पहले बताया हर एक का समय आता है , अब समय आ रहा इलेक्ट्रिक स्कूटरों का…. इनमे भी काफी शोध चल रहा , और वो समय दूर नहीं जब सड़को पर इलेक्ट्रिक गाड़िया ज्यादा दौड़ेंगी।

नोट: स्कूटी को लेकर लिखा कमेंट/कथन लेखक के निजी विचार/आपबीती है।

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